जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ एक मर्यादित, अनुशासित एवं सुसंगठित धर्मसंघ है। तेरापंथ के आद्य अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु ने जिनवाणीयुक्त आगमों को आधार मानकर चारित्रिक विशुद्धि की नींव पर तेरापंथ का शिलान्यास किया। तेरापंथ की गौरवशाली आचार्य परंपरा ने अपने साधनाबल, तपोबल और प्रज्ञाबल से अपने-अपने आचार्यकाल में सबल और युगानुरूप आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर धर्मसंघ को आध्यात्मिक ऊंचाई और तेजस्विता प्रदान की। तपःपूत आचार्यों की पावन छत्रछाया और अनुशासना में त्यागी, तत्त्वज्ञ एवं प्रबुद्ध साधु-साध्वियों की लंबी शृंखला ने अपनी श्रम बूंदों से तेरापंथ के वटवृक्ष को अभिसिंचित किया। ‘‘एक गुरु और एक विधान’’ के पर्याय तेरापंथ धर्मसंघ की विकास यात्रा में श्रावक समाज की भूमिका भी महनीय रही है। संघ और संघपति के प्रति सर्वात्मना समर्पित, श्रावक समाज ने भी संघ की श्रीवृद्धि में अपने दूरदर्शी चिंतन और निष्ठायुक्त पुरुषार्थ से अपना अमूल्य योगदान दिया है। 28 अक्टूबर 1913 को जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की स्थापना के साथ निष्ठाशील और सर्वात्मना समर्पित श्रावक समाज को संगठित रूप में विशिष्ट और संवैधानिक पहचान मिली।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा तेरापंथ समाज की ‘संस्था शिरोमणि,’ प्रतिनिधि संस्था एवं ‘मां’ के रूप में विख्यात है। समाज की इस गौरवपूर्ण संस्था के द्वारा समाजोत्थान हेतु अनेकानेक आध्यात्मिक और सामाजिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। एक सदी से भी अधिक आयु वाली धर्मसंघ की इस सर्वाधिक प्राचीन संस्था ने समाज के योगक्षेम हेतु विकास के नए-नए क्षितिज उद्घाटित किए, अपने आयामों से समाज को नई पहचान दी और संघ व संघपति के प्रति सदा सर्वात्मना समर्पित रहकर धर्मसंघ की सुरक्षा और उन्नति में अपना निष्ठापूर्ण, उल्लेखनीय और अविस्मरणीय योगदान दिया। इन उपलब्धियों की शृंखला प्रलम्ब है, जिन्हें महासभा ने परम पूज्य आचार्यों के आशीर्वाद और अपने प्रबल पुरुषार्थ से प्राप्त किया।