महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में आयोज्य हुआ ‘बेटी तेरापंथ की’ का प्रथम सम्मेलन
-देश-विदेश से 850 से अधिक बेटियां अकेले, परिवार तथा पतियों के साथ पहुंची गुरु सन्निधि में
-गुरुमुख से मिली प्रथम प्रेरणा ने किया जीवन में किया नवीन संचार
19.08.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)
मायानगरी मुम्बई में वर्ष 2023 का चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में यों तो अनेकानेक आयोजन प्रतिदिन समायोजित हो रहे हैं, किन्तु शनिवार को महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में ‘बेटी तेरापंथ की’ का प्रथम सम्मेलन आयोजित हुआ। इस अनूठे सम्मेलन से मानों पूरे नन्दनवन परिसर में स्नेह, संस्कार और समन्वय की त्रिवेणी प्रवाहित होने लगी। इस प्रथम सम्मेलन में भाग लेने के लिए देश-विदेश से 850 से भी अधिक बेटियां सोत्साहित संभागी बनीं। इतना ही सैंकड़ों बेटियां अपने पति व बच्चों के साथ तो अनेक बेटियां पूरे परिवार के साथ इस सम्मेलन में संभागी बनीं। बेटियां अपने आध्यात्मिक मायके आकर मानों भावविभोर बनी हुईं थीं।
तीर्थंकर समवसरण में अन्य श्रद्धालुओं के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित ‘बेटी तेरापंथ की’ के प्रथम सम्मेलन में संभागी बनी सैंकड़ों बेटियां और दामाद भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इसलिए विशाल प्रवचन पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘बेटी तेरापंथ की’ के संभागियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि यह सम्मेलन संस्कार और शिक्षा को पुष्ट बनाने वाला है। यह जीवन की महत्त्वपूर्ण निधि हो सकती है। पुरानी स्मृतियों को ताजा करने के साथ-साथ अच्छे धार्मिक संस्कार, अहिंसा, संयम, शांति, समन्वय आदि रहे तो जीवन अपने सुखी रह सकता है। परिवार और बच्चों में अच्छे संस्कार देने का प्रयास होना चाहिए। बेटियों का तो मां-बाप के पास आना ही विशेष बात होती है तो बेटियां और अन्य भी इससे अच्छी प्रेरणा, अच्छे धार्मिक संस्कार आदि को आत्मसात करने का प्रयास करें।
आज जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में ‘बेटी तेरापंथी की’ कार्यक्रम हो रहा है। महासभा तेरापंथ समाज की प्रतिनिधि संस्था है। इस संस्था के द्वारा यह जो सम्मेलन किया गया है, वह अच्छे संस्कारों को पुष्ट बनाने वाला है। बेटियों के साथ दामादों का आना भी अच्छी बात है। बेटी और दामाद अच्छे संस्कारों से युक्त बने। अपने ढंग का यह सम्मेलन हो रहा है। संस्कारों के साथ पुरानी स्मृतियां भी ताजा करने का उपक्रम हो सकता है। यह सम्मेलन संस्कार, स्मृति और कुछ नया पाने के संदर्भ में भूमिका निभा सकता है। यह सम्मेलन शुद्ध नीतिपूर्ण और स्नेह और वात्सल्य से परिपूर्ण हो सकता है। किसी भी संप्रदाय में रहें अहिंसा, संयम और तप का प्रभाव जीवन में बना रहे, दूसरों की भी आध्यात्मिक-धार्मिक सेवा करने का प्रयास हो।
इस सम्मेलन के संदर्भ में ‘बेटी तेरापंथ की’ की संयोजिका श्रीमती कुमुद कच्छारा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। सहसंयोजिका श्रीमती वन्दना बरड़िया से बेटियों से परिसंवाद किया तो बेटियों के भावपूर्ण संवाद से पूरे माहौल को स्नेहिल बना दिया। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने भी इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। मुम्बई से संबंधित बेटियों ने गीत का संगान किया। बेटियां अपने सम्मेलन के शुभारम्भ में ही गुरुमुख से प्रेरणा प्राप्त कर तृप्ति का अनुभव कर रही थीं।
बेटियों को साधु-साध्वियों से मिला आध्यात्मिक प्रशिक्षण
-सुखी जीवन के सूत्र और उत्तरदायी कौन विषय पर प्राप्त हुई आध्यात्मिक प्रेरणा
-पुरानी यादों को नवीन रूप में प्राप्त कर उल्लसित दिखीं तेरापंथ की बेटियां
दोपहर 1.30 बजे ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन में पहुंची बेटियों को सुखी जीवन के सूत्र विषय पर उत्प्रेरित करते हुए मुनि कुमारश्रमणजी ने कहा आज से ‘बेटी तेरापंथ की’ का अनूठा उपक्रम प्रारम्भ हुआ है। इसमें स्नेह, संस्कार और समन्वय के विभिन्न सत्र आयोजित हो रहे हैं। अभी के चर्चा का विषय है सुखी जीवन के सूत्र। वास्तव में देखा जाए प्रत्येक आदमी सुखी बनना जाता है। हर आदमी को दुःख से भय लगता है। कोई साधना कर रहा है तो जन्म-मरण के दुःख से मुक्त होना चाहता है। घर में रहता है तो वह बीमारी, अभाव आदि दुःख से बचने का प्रयास करता है। हर प्राणी सुख चाहता है। चींटी भी दुःख नहीं चाहती। भगवान महावीर ने बताया कि प्राणी स्वयं की गलतियों और प्रमादों के कारण दुःख को आमंत्रित कर लेता है। दुःख में से सुख निकालो तो आपको दुःखी नहीं बना सकता और यदि सुख में भी दुःख निकालने लगे तो कोई आपको सुखी नहीं बना सकता। परिस्थितियां भले बदल जाए, कोई कष्ट दे सकता है, किन्तु आपको दुःखी नहीं बना सकता। सुख भीतर में होता है। इसलिए प्रत्येक परिस्थितियों में स्वयं को प्रसन्न रखने का प्रयास हो।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने बेटियों को ‘उत्तरदायी कौन’ विषय के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जगत की विविधताओं का वर्णन करते हुए कहा कि व्यक्ति अपने कर्मों के कारण जगत में विविधताएं देखने को प्राप्त होती हैं। आदमी अपने जीवन में जो भी कर्म करता है, उसके अनुरूप फल प्राप्त होता है। आदमी को अपनी प्रवृत्ति अर्थात कर्म को अच्छा बनाने का प्रयास हो तो उसका उसे अच्छा फल प्राप्त हो सकता है। साध्वीप्रमुखाजी ने बेटियों को विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं।
महातपस्वी महाश्रमण से जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कर निहाल हुए बेटी व दामाद
‘बेटी तेरापंथ की’ के प्रथम सम्मेलन में उत्साह से पहुंची बेटियों पर मानों मां-बाप की भांति अमृतवर्षा हो रही थी। तभी तो प्रातःकाल मुख्य प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन, तदुपरान्त साध्वीप्रमुखाजी व अन्य साधु-साध्वियों से प्रेरणा के उपरान्त बेटियों के समक्ष उनके आध्यात्मिक पिता तुल्य आचार्यश्री महाश्रमणजी तीर्थंकर समवसरण में विराजमान हुए। आचार्यश्री के समक्ष बेटियों ने अपने भीतर उठे विभिन्न जिज्ञासाओं को बिल्कुल एक बच्चे की भांति हृदय खोलकर रखा तो शांतिदूत आचार्यश्री ने भी पिता की भांति अपने अमृत तुल्य वचनों के द्वारा उनके जिज्ञासाओं को समाहित कर दिया। इसके साथ आए दामादों ने भी अपनी जिज्ञासाओं का समाधान आचार्यश्री से प्राप्त कर आत्मतोष को प्राप्त किया। यह अद्भुत अवसर मानों उनके जीवन का अनमोल क्षण बन गया।
नन्दनवन परिसर मेंहदी की खुशबू और बेटियों की चहक से हुआ गुलजार
-महाश्रमण कीर्तिगाथा का अवलोकन कर आश्चर्य युक्त श्रद्धा से हुईं ओतप्रोत
बेटियों का उत्साह, उल्लास व उमंग पूरे नन्दनवन परिसर को गुलजार बनाए हुए हैं। इस सम्मेलन में मानों बेटियों को उनकी पुरानी यादों को नवीन रूप में प्रदान कर दी हैं। आचार्यश्री से नवीन ऊर्जा प्राप्त कर बेटियों को अवकाश मिला तो बेटियां मेंहदी रचाने में जुट गईं। एक-दूसरे के हाथों पर मेंहदी रचाती बेटियों ने प्रथम सम्मेलन ‘बेटी तेरापंथ की’ का लोगो को रचकर मानों अपने हृदय के भावों को उकेर दिया। मेंहदी के महक से पूरा नन्दनवन महक उठा। बेटियों की मधुर चहक से नन्दनवन की फिजा बदली-बदली सी नजर आ रही थी।
बेटियों को आचार्यश्री महाश्रमणजी के पचासवें दीक्षा कल्याण महोत्सव पर महासभा द्वारा ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ एग्जिविशन को देखने का भी अवसर प्राप्त हुआ। बेटियों ने अत्याधुनिक रूप से बने इस एग्जिविशन में का अवलोकन किया। एग्जिविशन में आचार्यश्री के जीवनकाल से लेकर अभी तक यात्राओं का वर्णन, 180 डिग्री फिल्म, अहिंसा यात्रा के दौरान भूंकप, हिमालय की चढ़ाई, भयानक घाटियों की यात्रा, नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति गूंज, महाश्रमण साहित्य, संवाद आचार्यश्री महाश्रमणजी, माइण्ड गेम, आदि अनेक अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से आचार्यश्री के जीवनवृत्त का सजीव अवलोकन कर हर बेटी के मन में आश्चर्य मिश्रित श्रद्धा का भाव और प्रगाढ़ होता दिखा। उनके चेहरे पर मानों कह रहे थे, धन्य हैं हम जो हमें ऐसे महापुरुष की मंगल सन्निधि में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हो गया।
ग्रुप एक्टिविटि में बेटियों ने दिखाई अपनी प्रतिभा
सायंकालीन भोजन के उपरान्त बेटियां पुनः तीर्थंकर समवसरण में एकत्रित हुईं। अब मौका था अपनी आंतरिक प्रतिभा को दिखाने का। ग्रुप एक्टिविटि बेटियों ने अपने-अपने ग्रुप बनाए और ग्रुप में मिले हुए टास्क को जीवंत करना प्रारम्भ कर दिया। समय की सीमा प्राप्त हुए विषय के संदर्भ में बेटियों की प्रस्तुति प्रारम्भ हुई तो देखने वाले भी दंग रह गए। कम समय में भी बेटियों ने विभिन्न विषयों पर अपनी पूर्ण क्षमता के साथ प्राप्त हुए टास्क को पूरा किया। मानों हर बेटी अपने ग्रुप को विजयी बनाने के लिए कटिबद्ध थी। यह एक ऐसा अवसर था जो बेटियों को अपने गृह कार्यों से अलग होकर कुछ अपनी प्रतिभा के अनुसार कुछ अलग करने का था। अक्सर परिवारों को दक्षता से संभालने वाली बेटियों ने मंच पर भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। बेटियों के ग्रुप का मूल्याकंन भी किया गया।
साथ आए दामाद भी बिजनेस नेटवर्किंग से हुए लाभान्वित
बेटियों के साथ आए दामादों के लिए कॉन्फ्रेंस हॉल में बिजनेस नेटवर्किंग का आयोजन किया गया। जिसमें श्री समीर वकील और श्री विक्कीजी आदि ने दामादों को बिजनेस नेटवर्किंग की जानकारी दी। दामाद भी इस प्रकार अपने आध्यात्मिक ससुराल में आकर आनंद की अनुभूति कर रहे थे।
बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन का दूसरा दिन
-प्रेक्षाध्यान, गुरुवाणी व आध्यात्मिक प्रशिक्षण से हुईं लाभान्वित
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित ‘बेटी तेरापंथ की’ के प्रथम सम्मेलन में संभागी बनी बेटियों के दूसरे दिन का शुभारम्भ प्रेक्षाध्यान से हुआ। मानसिक शांति, एकाग्रता के विकास के लिए बेटियों को साध्वी शुभ्रयशाजी ने प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया।
तदुपरान्त प्रातःकालीन प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बेटियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में द्विदिवसीय अच्छा कार्यक्रम चला। बेटियां जहां भी रहें अपने जीवन में अहिंसा, संयम और तप के प्रभाव को बनाए रखें। जहां तक संभव हो, दूसरों को भी धार्मिक-आध्यात्मिक सहयोग दें। अपने परिवार को कलहमुक्त और संस्कार से युक्त बनाने का प्रयास करें। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में कच्छ-भुज तथा मध्यप्रदेश से समागत बेटियों ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान कर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त बहुश्रुत परिषद के सदस्य मुनि दिनेशकुमारजी ने भी बेटियों को आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्रदान किया।
साध्वीवर्याजी से संस्कारी परिवार को बनाने की मिली प्रेरणा
दूसरे दिन के दूसरे सत्र में बेटियों को साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने ‘पहचान संस्कारी परिवार की’ विषय में प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन बड़ा ही मूल्यवान है। अपने कार्यों से अपने जीवन को अमूल्य बनाने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में सत्संस्कार होते हैं तो जीवन भी अमूल्य बन सकता है। जीवनशैली को अच्छा बनाने के लिए अपने दृष्टिकोण को सही होना चाहिए। अनेकांतयुक्त जीवनशैली हो। आग्रह नहीं, अनाग्रही बनने का प्रयास हो, ताकि पारिवारिक जीवन शांति से युक्त हो। परिवार में सामंजस्य बनाने का प्रयास हो।
साध्वीवर्याजी से प्रेरणा के उपरान्त मुनि कुमारश्रमणजी तथा साध्वी श्रुतयशाजी से भी बेटियों को आध्यात्मिक प्रेरणाएं प्राप्त हुईं।
बेटियों ने बांधी कलाई पर रखी, तो प्राप्त हुई आध्यात्मिक सीख
सावन का महीना बेटियां जब अपने मायके पहुंचती हैं तो रक्षाबंधन का त्यौहार भी आसपास ही होता है। इसलिए भाईयों को बहनें राखी भी बांधती हैं। ऐसे में सौभाग्य से अपने आध्यात्मिक मायके में पहुंची बेटियां भला इस त्यौहार को मनाए बगैर कैसे जा सकती थीं। दूसरे के दिन सायंकाल महासभा के पदाधिकारियों सहित तेरापंथ समाज के अन्य संस्थाओं के पदाधिकारी भी बेटियों के समक्ष बैठे तो बेटियों ने उनकी कलाइयों पर राखियां बांधी तो पदाधिकारियों द्वारा उन्हें आध्यात्मिक सीख प्रदान की गई। यह एक भावुक पल था। मानों दोनों ओर से भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था। हाथ पर बंधी राखियां बहन-बेटियों के समर्पण को प्रदर्शित कर रही थीं तो पदाधिकारियों के मन में उनकी रक्षा, सुरक्षा और उनके सुख भविष्य की मंगलभावना को दर्शा रहा था।
अनुभव की प्रस्तुति में उमड़ा भावना का ज्वार
-हंसते हुए बेटियां कब होती हैं विदा को चरितार्थ कर दिया बेटियों ने
जब बेटियों के इस सम्मेलन का अंतिम सत्र प्रारम्भ हुआ तो उनकी उनकी भावनाओं का ज्वार ऐसे उमड़ा की पूरा परिसर सराबोर हो उठा। ‘आखिर मायके से कब हंसते हुए बेटियां होती हैं विदा’ को बेटियों ने चरितार्थ कर दिया। वर्षों बाद अपने आध्यात्मिक मायके से इतना, स्नेह, संस्कार और समन्वय को प्राप्त कर बेटियों का गला भरा हुआ था। मानों वे अपनी पुरानी यादों के साथ नवीन रूप से मिले स्नेह के बंधन से बंधी हुई थीं। वे अपनी भावनाओं को मुख से कम और अपने नेत्रों से ज्यादा व्यक्त कर रहीं थीं। इस दृश्य से पूरा परिसर सराबोर हो रहा था। मायके के आंगन में चहकती हुईं बेटियां अपनी भावनाओं इस रूप में अभिव्यक्त करते हुए विंदा हुईं कि यह स्नेह का धागा सदैव बंधा रहे और हमें अपने आध्यात्मिक मायके बार-बार आने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे।