सामान्यतया अग्रांकित अर्हता सम्पन्न व्यक्ति ही उपासक-उपासिका बन सकते हैं-
उपासक-उपासिका बनने के इच्छुक भाई-बहनों के लिए केन्द्रीय उपासक प्रशिक्षण शिविर में संभागी बनकर प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य होता है। इस प्रशिक्षण शिविर में संभागी बनने के लिए एक प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। उस परीक्षा में उत्तीर्ण व्यक्ति ही प्रशिक्षण शिविर में संभागी बन सकते हैंl प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षण के पश्चात् आयोजित परीक्षा में चयनित व्यक्ति ही उपासक-उपासिका बन सकते हैंl
प्रतिवर्ष गुरुकुलवास में श्रावण कृष्णा पंचमी के दिन प्रवेश परीक्षा का आयोजन होता है। क्षेत्रीय स्तर पर अपेक्षानुसार कभी भी प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जा सकता है।
यह शिविर सामान्यतया प्रतिवर्ष परम पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में श्रावण कृष्णा पंचमी से प्रारम्भ होता है । इसकी अवधि प्राय: नौ दिनों की होती है ।
इस शिविर में भाग लेने वाले संभागी की आयु सीमा 25 वर्ष से 60 वर्ष तक है ।
यह पाठ्यक्रम दो भागो में विभक्त है -
उपासक प्रशिक्षण शिविर के पाठ्यक्रम में अग्रांकित विषय सम्मिलित हैं-
सभी पाठ्य पुस्तकें शिविर के प्रारम्भ में नि:शुल्क दी जाती हैं।
उपासकों के लिए सफेद वस्त्र (चोलपट्टा, पायजामा तथा कमीज कुर्ता आदि) व इसके ऊपर बिना रंगीन बार्डर की सफेद चद्दर एवं बहनों के लिए निर्धारित डिजाइन की साड़ी गणवेश के रूप में निर्धारित हैं। चद्दर व साड़ी उपासक प्रशिक्षण शिविर में नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती है।
प्रशिक्षण शिविर में संभागियों के लिए आवास, भोजन आदि सभी सुविधाएं नि:शुल्क रहती हैं।
उपासक-उपासिकाओं की मुख्यतः दो श्रेणियां हैं-
सहयोगी उपासक-उपासिका प्रारंभिक भूमिका की श्रेणी है। प्रवक्ता उपासक-उपासिका अपेक्षाकृत परिपक्क उपासक-उपासिकाओं की श्रेणी है। कम से कम दो साल के यात्रा अनुभव के बाद प्रवक्ता उपासक बना जा सकता है। इसके लिए भी पाठ्यक्रम निर्धारित है एवं नियमानुसार परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। यात्राओं आदि के दौरान प्रवक्ता उपासक-उपासिका अग्रणी के रूप में मुख्य दायित्व का निर्वहन करते हैं और सहयोगी उपासक-उपासिकाएं उनका सहयोग करते हैंl
उपासक-उपासिकाओं को निर्देशानुसार यथासंभव पर्युषण यात्रा करनी ही चाहिए, किन्तु विशेष कारण की स्थिति में उसे स्थगित भी किया जा सकता है। समुचित और पुष्ट कारणों के बिना दो वर्षों तक यात्रा नहीं करने वाले उपासक-उपासिकाओं की आगामी यात्रा रोकी जा सकती है।
पर्युषण पर उपासक-उपासिका को आध्यात्मिक सहयोग हेतु आमंत्रित करने हेतु निर्धारित पर्युषण प्रार्थना पत्र भरकर उसमें उल्लिखित पते पर प्रेषित करना होता है।
अन्य समयों में उपासक-उपासिकाओं को आमंत्रित करने हेतु पूज्यप्रवर से लिखित निवेदन किया जा सकता है अथवा महासभा / उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक से भी सम्पर्क किया जा सकता है।
उपासक-उपासिकाओं के लिए विशेष व्यवस्थाओं की अपेक्षा नहीं रहती है, किन्तु अग्रांकित कुछ बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए-
उपासकों के प्रवास के दौरान सभा/समाज के लिए ध्यान रखने योग्य विशेष बिन्दु अग्रांकित हैं-